आयुर्वेद में भोजन (आहार) को लेकर बहुत गहराई से बताया गया है, क्योंकि

आयुर्वेद के अनुसार -“आहार ही औषधि है और आहार ही रोग का कारण भी बन सकता है।”

आयुर्वेद के चरक संहिता में आहार का महत्व बताया गया है:

“अन्नं हि जीवनं प्राणिनाम्।”
अर्थात – आहार ही जीवों का जीवन है।

आयुर्वेद के अनुसार यदि आहार उचित समय पर , सही मात्रा अनुपात में और अपनी ‘प्रकृति’ के अनुसार लिया जाए, तो शरीर हमेशा स्वस्थ, ऊर्जावान और रोग-मुक्त ( निरोग ) रहता है।

आयुर्वेद में “प्रकृति” क्या है?

हर इंसान की एक अलग प्रकृति (body type) होती है, जो तीन दोषों पर आधारित होती है:
वात (Vata) – हवा जैसा
पित्त (Pitta) – आग जैसा
कफ (Kapha) – पानी/मिट्टी जैसा
इनमें से जो दोष ज्यादा होता है, वही आपकी प्रकृति बनाता है।

कैसे पहचानें अपनी प्रकृति?

🌀 वात प्रकृति – अगर आप :

दुबले-पतले हैं
जल्दी थक जाते हैं
ठंड से जल्दी परेशान होते हैं
बहुत सोचते हैं, मूड जल्दी बदलता है
➡️ तो आप वात प्रकृति हैं।

🔥 पित्त प्रकृति – अगर आप:

मध्यम शरीर वाले हैं
जल्दी गुस्सा करते हैं
गर्मी से चिढ़ होती है
पाचन तेज है
➡️ तो आप पित्त प्रकृति हैं।

🌊 कफ प्रकृति – अगर आप:

भारी शरीर वाले हैं
शांत स्वभाव के हैं
ठंडा मौसम पसंद है
थोड़ा आलसी महसूस करते हैं
➡️ तो आप कफ प्रकृति हैं।
Confuse है तो आयुर्वेद डॉक्टर से पूछे या यूट्यूब पे आयुर्वेद डॉक्टर के वीडियो देख के आकलन कर सकते है।

प्रकृति जानने के फायदे:

सही आहार और दिनचर्या चुनने में मदद
बीमारियों से बचाव
शरीर और मन में संतुलन

आयुर्वेद के अनुसार आहार के मूल सिद्धांत:

आयुर्वेदिक सिद्धांत विवरण
समय पर भोजन (काल भोजना) सुबह, दोपहर और रात का भोजन समय पर करना
सात्विक आहार शुद्ध, हल्का, सुपाच्य और पौष्टिक भोजन जैसे फल, सब्जियाँ, दालें आदि
मिताहार भूख से थोड़ा कम खाना – पेट का ½ भाग भोजन, ¼ जल और ¼ वायु के लिए छोड़ना
गर्म और ताजा भोजन ताजा, गरम और सजीव (जीवंत प्राणवाला) खाना पचने में सहायक
सही संयोजन (Food Combining) दूध और नमक, दूध और खट्टा – ऐसे गलत फूड कॉम्बिनेशन से बचना
त्रिदोष (वातपित्तकफ) के अनुसार आहार हर व्यक्ति की प्रकृति के अनुसार खाना निर्धारित होना चाहिए

 

स्वस्थ और निरोगी शरीर के लिए आहार का योगदान

  1. आहार से ही ओज, तेज और बल की उत्पत्ति होती है।
  2. पाचन तंत्र (अग्नि) को संतुलित रखकर आहार शरीर को पोषण देता है।
  3. गलत आहार से अम्लपित्त, कब्ज, मोटापा, मधुमेह, हृदयरोग आदि उत्पन्न होते हैं।
  4. रोगा सर्वे अपि मन्दे अग्नौ – सभी रोग मंदाग्नि (कमजोर पाचन शक्ति) से ही होते हैं।

 

त्रिदोष और आहार का संबंध

दोष संतुलन हेतु आहार
वात गर्म, चिकना, पौष्टिक भोजन (घी, सूप, दलिया)
पित्त ठंडा, कम मसालेदार, मीठा और कड़वा स्वाद वाला भोजन
कफ हल्का, गर्म, सूखा और तीखा भोजन (मसाले, अदरक, शहद आदि)

जिन बातों से बचने को कहा गया है:

  • बासी, डिब्बाबंद और बहुत गरम-ठंडा साथ में खाना ❌
  • अति भोजन, बार-बार खाना, देर रात खाना ❌
  • तनाव में या खड़े-खड़े खाना ❌
  • गलत फूड कॉम्बिनेशन ❌

कुछ जरूरी आयुर्वेदिक आहार नियम:

  1. भोजन में चुप रहो – मन को शांत रखकर खाना
  2. भोजन को अच्छे से चबाओ – 32 बार चबाने की परंपरा
  3. खाने के बाद थोडा चलो – भोजन के बाद सौ कदम चलना
  4. भोजन के 2 घंटे बाद पानी – बीच में थोड़ा सिप कर सकते हैं
  5. पका हुआ घर का ताजा भोजन सर्वोत्तम है

निष्कर्ष:

सही आहारसही समय परसही मात्रा में = स्वस्थ और निरोगी जीवनआयुर्वेद में भोजन को सिर्फ पेट भरने का माध्यम नहीं बल्कि शरीर, मन और आत्मा के पोषण का माध्यम माना गया है।

अस्वीकरण: इस लेख में दी गई जानकारी केवल सामान्य जागरूकता औरजीवन शैली में सुधर करने उद्देश्य से दी गई है।  कृपया किसी भी स्वास्थ्य समस्या या उपचार के लिए प्रशिक्षित आयुर्वेदिक चिकित्सक या योग्य स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लें।

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