Coolie मूवी रिव्यू: Rajinikanth और Lokesh Kanagaraj की क्राइम ड्रामा सफर

फिल्म की पृष्ठभूमि

रजनीकांत के 50 साल के करियर में उनकी फिल्मों का इंतजार हमेशा खास होता है। “कूली” (Coolie) इस बार उनके साथ निर्देशक लोकेश कनगराज की जोड़ी लेकर आई है, जो अपने मास-एक्शन और रियलिज्म के मिश्रण के लिए जाने जाते हैं। फिल्म का ट्रेलर रिलीज़ होते ही यह साफ हो गया था कि इसमें 1981 की फिल्म “Thee” (दीवार का तमिल रीमेक) की झलक मिलेगी, लेकिन नए अंदाज में।

निर्देशक: लोकेश कनगराज
मुख्य कलाकार: रजनीकांत, सोबिन शाहीर, नागार्जुन अक्किनेनी, श्रुति हासन, सत्यराज, उपेंद्र
जॉनर: एक्शन-क्राइम ड्रामा
अवधि: 170 मिनट
भाषा: तमिल (हिंदी डब उपलब्ध)

कहानी

कहानी की शुरुआत होती है निर्दयी डायलन (सोबिन शाहीर) से, जो अपने बॉस साइमन (नागार्जुन) के लिए पोर्ट ऑपरेट करता है। साइमन एक अपराध सरगना है जो लग्ज़री घड़ियों की स्मगलिंग करता है। पुलिस का एक अंडरकवर एजेंट पकड़ा जाता है और उसकी हत्या कर दी जाती है। इसी दौरान हम मिलते हैं देवा (रजनीकांत) से, जो कभी बंदरगाह का मजदूर था और अब एक आलीशान हवेली का मालिक है।

देवा को पता चलता है कि उसका सबसे अच्छा दोस्त राजशेखर (सत्यराज) की मौत हार्ट अटैक से नहीं, बल्कि किसी साजिश का नतीजा थी। वह सच्चाई जानने के लिए डायलन और साइमन की दुनिया में कदम रखता है। इस सफर में कई सवाल सामने आते हैं — राजशेखर का घड़ियों के स्मगलरों से क्या रिश्ता था? उसकी बेटी प्रीति (श्रुति हासन) देवा से नाराज़ क्यों है? और असली गुनहगार कौन है?

निर्देशन और स्क्रीनप्ले

लोकेश कनगराज ने फिल्म को एक मजबूत पृष्ठभूमि और मास-सीन के साथ शुरू किया है। पहले हाफ में कहानी डिटेल में जाती है, जो रजनीकांत की हाल की फिल्मों में कम देखने को मिला है। हालांकि, बीच-बीच में गति धीमी पड़ जाती है और कुछ सीक्वेंस अनावश्यक लंबे लगते हैं।

फिल्म में पुरानी यादों को ताज़ा करने वाले फ्लैशबैक सीन्स अच्छे लगे, खासकर देवा के मजदूर दिनों को दिखाने वाले हिस्से। लेकिन यह उन दर्शकों को पूरी तरह संतुष्ट नहीं कर पाती जो “थलाइवा” से एक नॉन-स्टॉप एंटरटेनर की उम्मीद रखते हैं।

अभिनय

  • रजनीकांत: उम्र के साथ उनकी स्क्रीन प्रेज़ेंस में बदलाव आया है, लेकिन उनका करिश्मा कायम है। एक्शन सीक्वेंस में थोड़ा थकान का एहसास होता है, लेकिन यह किरदार के इमोशनल पहलू में फिट बैठता है।

  • सोबिन शाहीर: विलेन के रूप में प्रभावी और दमदार।

  • नागार्जुन: सीमित स्क्रीन टाइम के बावजूद अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।

  • श्रुति हासन और सत्यराज: कहानी को भावनात्मक गहराई देते हैं।

  • उपेंद्र: छोटी लेकिन अहम भूमिका।

संगीत और तकनीकी पहलू

अनिरुद्ध रविचंदर का बैकग्राउंड स्कोर फिल्म के एक्शन और इमोशनल सीन में जान डालता है। “चिकुटु” गाना मास-एंटरटेनमेंट के लिए बनाया गया है और थिएटर में अच्छा रिस्पॉन्स लाता है।
कैमरा वर्क और सेट डिज़ाइन पोर्ट और अंडरवर्ल्ड की दुनिया को रियल दिखाने में सफल रहते हैं।

प्लस पॉइंट्स

  • रजनीकांत का करिश्मा और कुछ दमदार एक्शन सीन

  • सोबिन शाहीर का नेगेटिव रोल

  • बैकग्राउंड स्कोर और मास-सीन

  • फ्लैशबैक में पुरानी फिल्मों का नॉस्टेल्जिक टच

कमजोरियां

  • कहानी में अनावश्यक खिंचाव

  • कुछ सवालों के जवाब देर से मिलना

  • फर्स्ट हाफ में भारी-भरकम स्क्रीनप्ले, जो हर दर्शक को पसंद नहीं आएगा

निष्कर्ष

“कूली” एक मिक्स्ड बैग है। यह रजनीकांत फैंस के लिए कुछ खास पल जरूर देती है, लेकिन लोकेश कनगराज से जो उम्मीद थी, उस पर पूरी तरह खरी नहीं उतरती। अगर आप रजनीकांत के लंबे करियर को सलाम करने और कुछ मास-एंटरटेनमेंट मोमेंट्स देखने के लिए आए हैं, तो यह फिल्म देखने लायक है, लेकिन क्राइम-ड्रामा के शौकीनों को थोड़ा धैर्य रखना होगा।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top