आज इंफोसिस फाउंडर नारायण मूर्ति की पत्नी और मशहूर लेखिका सुधा मूर्ति का जन्मदिन है। सुधा मूर्ति को टाटा मोटर्स (तब टेल्को) की पहली महिला इंजीनियर होने का गौरव प्राप्त है।
पिता का साथ और इंजीनियरिंग का सफर
सुधा मूर्ति अपनी सफलता का श्रेय अपने पिता डॉ. आर. एच. कुलकर्णी को देती हैं। उस दौर में इंजीनियरिंग को सिर्फ़ लड़कों का क्षेत्र माना जाता था, लेकिन उनके पिता ने समाज की परवाह किए बिना बेटी को पढ़ने का हौसला दिया।
- 1972 में उन्होंने बीवीबी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (अब KLE टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी) से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की।
- कॉलेज में वे अकेली लड़की थीं। वहाँ महिलाओं के लिए शौचालय तक नहीं था। उन्होंने इस समस्या को भी सहन किया और चार साल की पढ़ाई बिना छुट्टी लिए पूरी की।
जे.आर.डी. टाटा को लिखा खत
कॉलेज के दिनों में टेल्को का एक भर्ती विज्ञापन आया, जिसमें साफ लिखा था – “Only Men”। यह भेदभाव सुधा मूर्ति को अखर गया। उन्होंने गुस्से में सीधे जे.आर.डी. टाटा को पत्र लिख दिया।
पत्र में उन्होंने लिखा:
“समाज में 50% महिलाएं और 50% पुरुष हैं। अगर आप महिलाओं को अवसर नहीं देंगे तो देश कैसे आगे बढ़ेगा? यह आपकी कंपनी की सबसे बड़ी गलती है।”
बदल गई नीति – बनीं पहली महिला इंजीनियर
सुधा मूर्ति के पत्र का असर हुआ और टाटा मोटर्स ने अपनी ‘No Women Policy’ खत्म कर दी। इसके बाद सुधा मूर्ति पुणे प्लांट में कंपनी की पहली महिला इंजीनियर बनीं।
सालों बाद जब वे 2023 में उसी प्लांट गईं, तो उन्होंने देखा कि वहाँ करीब 300 महिलाएं काम कर रही थीं। यह देखकर वे भावुक हो गईं और कहा –
“ये सब मेरे पिता की वजह से संभव हुआ। उन्होंने मुझे समाज की परवाह किए बिना पढ़ाया। मेरी हर सफलता उन्हीं की देन है।”
साहित्य और सम्मान
सुधा मूर्ति ने अब तक 40 से अधिक किताबें लिखी हैं। उनकी चर्चित किताबों में Three Thousand Stitches, Dollar Bahu और Wise and Otherwise शामिल हैं।
उन्हें कई बड़े पुरस्कार मिल चुके हैं:
- 2006: पद्मश्री (महिला उत्थान के लिए)
- 2006: आर.के. नारायण साहित्य पुरस्कार
- 2020: लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय पुरस्कार
- 2023: साहित्य अकादमी पुरस्कार
निजी जीवन और संपत्ति
सुधा मूर्ति के पति नारायण मूर्ति की नेटवर्थ करीब ₹37,410 करोड़ है। सुधा मूर्ति के पास इंफोसिस की 0.93% हिस्सेदारी है, जिसकी वैल्यू जून 2025 तक ₹4970 करोड़ थी।
सुधा मूर्ति की कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर किसी महिला या पुरुष के भीतर मेहनत करने का जज़्बा और सही सोच हो तो कोई भी दीवार उन्हें रोक नहीं सकती। उन्होंने साबित किया कि नियम और परंपराएँ तब बदलती हैं जब कोई उनसे सवाल करता है। आज जिन महिलाओं को इंजीनियरिंग, कॉरपोरेट या किसी भी पुरुष-प्रधान क्षेत्र में बराबरी का हक़ मिल रहा है, उसमें सुधा मूर्ति जैसे लोगों का बड़ा योगदान है। उनकी ज़िंदगी हमें यह प्रेरणा देती है कि कभी डरना नहीं, बल्कि सही बात के लिए आवाज़ उठाना चाहिए।
अनुज यादव DainikBaate.com के संस्थापक हैं। वे न्यूज, टेक, ऑटो, हेल्थ और शेयर मार्केट पर सरल हिंदी में विश्वसनीय जानकारी साझा करते हैं।
