📍 रांची/गिरिडीह:
“अगर इरादे मजबूत हों, तो मंज़िल चाहे जितनी भी दूर क्यों न हो, रास्ता खुद-ब-खुद बन जाता है।”
झारखंड के छोटे से गांव से निकलकर डिप्टी कलेक्टर बनने वाले सूरज यादव की कहानी इसी बात का सबसे बड़ा उदाहरण है। दो वक्त की रोटी तक मुश्किल से जुटा पाने वाला एक लड़का आज प्रशासनिक सेवा में है — और यह सब संभव हुआ है उसकी मेहनत, इच्छाशक्ति और ज़िंदगी की जंग से पीछे न हटने वाले जज़्बे से।
कौन हैं सूरज यादव?
● गांव: कपिलो, जिला गिरिडीह, झारखंड
● पद: डिप्टी कलेक्टर (JPSC के ज़रिए चयनित)
● पेशे की शुरुआत: एक डिलीवरी बॉय के तौर पर
सूरज यादव का जन्म एक बेहद साधारण परिवार में हुआ। उनके पिता एक राज मिस्त्री थे और घर की आर्थिक हालत इतनी खराब थी कि कभी-कभी परिवार के लिए दो वक्त का खाना भी मयस्सर नहीं होता था। लेकिन सपने तो बड़े थे — सरकारी अफसर बनने के।
डिलीवरी बॉय से UPSC/JPSC की तैयारी तक का संघर्ष
सूरज ने पढ़ाई के लिए रांची का रुख किया, लेकिन जेब में पैसे नहीं थे। इसलिए उन्होंने रेस्टोरेंट में डिलीवरी बॉय की नौकरी पकड़ ली। दिन में 4-5 घंटे वो ट्रैफिक में फंसे रहते, ऑर्डर उठाते, थक कर चूर हो जाते, लेकिन रात होते ही किताबों के साथ जंग छेड़ देते।
❝ न बाइक थी, न आराम… बस एक सपना था – अफसर बनना! ❞
दोस्तों ने जब उनका जज़्बा देखा तो अपने स्कॉलरशिप के पैसे से सूरज के लिए सेकंड हैंड बाइक दिलाई। उसी बाइक पर उन्होंने सफर शुरू किया — डिलीवरी का भी और संघर्ष का भी।
परिवार बना सबसे बड़ी ताक़त
इस कठिन राह में सूरज अकेले नहीं थे।
● बहन ने घर की जिम्मेदारी अपने सिर ली।
● पत्नी ने हर मोड़ पर हौसला दिया।
जब सूरज हार मानने की कगार पर होते, तो घर से आने वाली आवाज़ उन्हें फिर से खड़ा कर देती।
इंटरव्यू में बोर्ड भी रह गया दंग!
JPSC का इंटरव्यू जब सूरज देने पहुंचे तो बोर्ड मेंबर्स को तब झटका लगा जब उन्होंने बताया कि वो एक डिलीवरी बॉय थे। लेकिन असली चौंकाने वाला पल तब आया जब उन्होंने डिलीवरी प्रोसेस से जुड़े टेक्निकल सवालों का बेहतरीन जवाब दिया।
❝ यह सिर्फ नौकरी नहीं थी, यह एक अनुभव था… जिसने मुझे प्रशासनिक सेवा के लिए तैयार किया। ❞ — सूरज यादव
आज की पहचान: एक मिसाल, एक प्रेरणा!
आज सूरज यादव न सिर्फ एक डिप्टी कलेक्टर हैं, बल्कि लाखों युवाओं के लिए “Hope Icon” बन चुके हैं। उनके संघर्ष ने साबित कर दिया कि:
🔥 “मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता, और मुश्किलें अगर रास्ता रोकें तो इरादे उन्हें धक्का देकर आगे बढ़ा सकते हैं!”
क्या सीख मिलती है सूरज यादव की कहानी से?
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हालात कभी भी फाइनल नहीं होते।
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अगर सपने सच्चे हैं तो रास्ता जरूर मिलेगा।
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दोस्त और परिवार सबसे बड़ा सहारा होते हैं।
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ईमानदारी से की गई मेहनत हमेशा रंग लाती है।
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संघर्ष को कभी शर्म नहीं, गर्व समझो।
सोशल मीडिया पर क्यों वायरल हो रही है ये कहानी?
✅ गरीब परिवार से आईएएस बनने की कहानी
✅ दोस्तों ने दिया स्कॉलरशिप का पैसा
✅ इंटरव्यू में डिलीवरी की टेक्निकल नॉलेज से किया इम्प्रेस
✅ Real struggle, no shortcuts!
निष्कर्ष: सूरज यादव ने जो कर दिखाया वो हर उस युवा को प्रेरणा देता है जो संसाधनों की कमी के कारण अपने सपनों को अधूरा छोड़ देता है। अगर “एक डिलीवरी बॉय” डिप्टी कलेक्टर बन सकता है, तो आप भी कोई भी मुकाम हासिल कर सकते हैं।
आपका क्या सपना है? नीचे कमेंट कर बताएं —
क्योंकि हो सकता है अगली कहानी किसी और की नहीं, आपकी हो!
अनुज यादव DainikBaate.com के संस्थापक हैं। वे न्यूज, टेक, ऑटो, हेल्थ और शेयर मार्केट पर सरल हिंदी में विश्वसनीय जानकारी साझा करते हैं।