जाने क्या है भारतीय धरोहर योग का इतिहास

योग का इतिहास (योग का उद्भव और विकास) बहुत प्राचीन और समृद्ध है। यह न केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है, बल्कि अब यह विश्वभर में स्वास्थ्य और आत्मिक विकास का माध्यम बन चुका है।

नीचे संक्षेप में योग का इतिहास प्रस्तुत है:


1. प्राचीन काल (5000+ वर्ष पहले)

  • योग की उत्पत्ति भारत में हुई थी। यह माना जाता है कि योग की शुरुआत सिंधु-सरस्वती सभ्यता में हुई थी।
  • प्राचीन ऋषि-मुनियों ने आत्मज्ञान प्राप्त करने और शरीर-मन पर नियंत्रण के लिए योग का अभ्यास किया।
  • मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई में योग मुद्रा में बैठे हुए मानव की मूर्तियाँ मिली हैं।

2. वैदिक काल (1500 ई.पू. – 500 ई.पू.)

  • वेदों में विशेषकर ऋग्वेद और यजुर्वेद में ध्यान, तप और समाधि जैसे शब्दों का उल्लेख है।
  • इस काल में योग का उद्देश्य ईश्वर से एकत्व प्राप्त करना और आध्यात्मिक ज्ञान की खोज था।

3. उपनिषद और भगवद्गीता काल

  • उपनिषदों में योग को “ब्रह्मज्ञान” प्राप्त करने का माध्यम बताया गया है।
  • भगवद्गीता (करीब 500 ई.पू.) में कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग का विस्तृत वर्णन है।

4. पतंजलि योग सूत्र (200 ई.पू. – 400 ई.)

  • महर्षि पतंजलि ने योग को व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत किया और इसे अष्टांग योग (8 अंगों वाला योग) के रूप में परिभाषित किया:

  1. यम (नैतिक नियम)
  2. नियम (आत्मिक अनुशासन)
  3. आसन (शारीरिक मुद्राएँ)
  4. प्राणायाम (सांस पर नियंत्रण)
  5. प्रत्याहार (इंद्रियों पर नियंत्रण)
  6. धारणा (एकाग्रता)
  7. ध्यान (मेडिटेशन)
  8. समाधि (आत्मा से जुड़ाव)

🔶 5. मध्यकालीन योग (500 ई. – 1500 ई.)

  • हठयोग का विकास हुआ, जिसमें शारीरिक क्रियाओं और प्राणायाम पर ज़ोर दिया गया।
  • योग के कई ग्रंथ लिखे गए जैसे:
    • हठयोग प्रदीपिका (स्वामी स्वात्माराम)

    • गोरक्षशतक (गोरखनाथ)

    • शिवसंहिता


6. आधुनिक काल (19वीं सदी से अब तक)

  • योग भारत से बाहर भी लोकप्रिय होने लगा।

  • प्रसिद्ध योग गुरु:

    • स्वामी विवेकानंद: 1893 में शिकागो धर्म संसद में योग का प्रचार।

    • स्वामी शिवानंद, परमहंस योगानंद, बी.के.एस. अयंगर, पतंजलि योगपीठ के बाबा रामदेव, आदि ने योग को जन-जन तक पहुँचाया।

  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा 21 जून को “अंतरराष्ट्रीय योग दिवस” घोषित किया गया (2015 से)।


निष्कर्ष

योग केवल व्यायाम नहीं है, बल्कि यह शरीर, मन और आत्मा के संतुलन का विज्ञान है। यह भारतीय ज्ञान परंपरा की ऐसी देन है, जो आज वैश्विक स्तर पर तनावमुक्त जीवन, स्वास्थ्य और शांति का साधन बन चुकी है।

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